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शून्य रोशनी

क्षितिज में फैली
शून्य रोशनी,

किसी आदिवासी चौखट को
रोशन कर रही है,

कीटकों, पतंगों,
घर के मवेशियों को
अंदेशा कराती
कि संध्या ढलने को है,
अब,

आदिवासी घर में
वह पुरानी लालटेन
उम्मीदों का चक्र बुन रही है,
लोक गीतों की गुन-गुनाहट के सहारे ||

– सविनय शुक्ला