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चंद्रमा

सूरज से कुछ किरणें लेकर ,
मैं धरती को दे देता हूँ,
जिस दुनिया से मैं बिछड़ा हूँ,
उसको रौशन कर देता हूँ ।

हूँ तो मैं बस एक पत्थर ही,
ना मैं हीरा ना मैं मोती,
ना ही बहता मुझमें जीवन,
ना ही जलती मुझमें ज्योति ।

लेकिन तपते सूरज को मैं,
अपने तन पर सह लेता हूँ,
और ऐसे ही जलते-जलते,
खुद को दर्पण कर लेता हूँ।

जिस दुनिया से बिछड़ा उसकी,
रातें रौशन कर देता हूँ,
हूँ दूर सही पर इतना ही कर
मन ही मन खुश होता हूँ ।

सूरज से कुछ किरणें लेकर ,
मैं धरती को दे देता हूँ,
अपनी धरती की खातिर मैं,
खुद को दर्पण कर देता हूँ ।।

– सौरभ विन्चुरकर