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मज़हब या इंसा

बुत परस्ती से मुझे नफ़रत नही है,
पर जीते जी उस से मिलने की हसरत नही है |
वो जब मिलेगा मिल जायेगा,
इतनी ज़ल्दबाज़ी का कोई मतलब नही है।
मंदिरों मस्जिदों में ढूंढकर देखा भी है मैंने ;
सीढ़ियों के बाहर उसके हमेशा इंसा ही मिला है
इसलिए अब उसकी जरुरत नही है |
क्या हो गया जो वो मुझे अब अच्छा नही लगता
छोड़ो इन बातों की अब फुर्सत नही है |

-सुलभ सिंह