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सच्चा इश्क़

क्या तुम्हें कभी सच्चा इश्क हुआ है?
मुझे इन घाटों पर घंटों समय बिताना अच्छा लगता है,
मुझे इन उलझी सी गलियों में भटकना अच्छा लगता है।
मुझे ये गंगा की धार अपने पास खींच लाती है,
और ये सांझ की आरती मंत्रमुग्ध कर जाती है।
अस्सी की सुबह की शान्ति से लंका की ज़िंदादिल रात,
युनिवर्सिटी के किस्से कहानियों की अलग है बात।
कचौड़ी की खुशबू से लेकर लस्सी की ताज़गी,
चाट के चटकारे और लिट्टि-चोखे की सादगी।
यहां दुनिया भर की बकैती है,
और यही से ज्ञान और इतिहास की नदियां बहती है।
मोक्ष का द्वार है यहाँ और है महादेव की भक्ति,
बुद्ध की महानता और है दुर्गा की शक्ति।
इससे दूर हूं फिर भी मेरे अंदर है ये कहीं रहता,
दिमाग कहीं भी हो ये दिल इसी के लिए है धड़कता।
अगर आप इसे सच्चा इश्क कहते हैं,
तो मुझे अपने शहर से सच्चा इश्क हुआ है।

– अनघा तेलंग