You are currently viewing ठंडी चाय और तुम

ठंडी चाय और तुम

  • सुनो, चाय ठंडी हो रही है..
    तुम तो ठंडी ही पीती हो न!
  • तुम तो ग़रम पीते हो न..
    तुम्हें जो अच्छा लगता है वो हर चीज़ छूकर देखना चाहता हूं.
  • मुझे तो तुम भी अच्छे लगते हो!
    हां तो मैंने ख़ुद को भी तो छुआ है
    ठीक उतनी ही बार जितने दफ़े तुम छूती हो मुझे

जब जब
हाथ पकड़ती हो तुम और सड़क पार, मुझे करा देती हो

जब भी
दिल्ली मेट्रो में लड़खड़ाती हो तुम और बचा लेने का नाटक करता हूं मैं

जब जब
अपनी बात सुनाने के लिए गर्दन तक हिलाकर रख देती हो हाथ मेरा

जब भी
ख़ुद का मज़ाक बनने के बाद कांधे पे धर देती हो पूरी ताकत के दो मुक्के

जब जब
आकर मिलती हो यूं हाथ मिलाकर किसी बड़े अफ़सर की तरह

जब भी
दायीं बाह को मेरी बाएं बाह में फंसा, रोती हो किसी बच्ची की तरह

जब जब
दूर से देख लेती हो और नज़दीक आती हो आंखें चढ़ाई मुस्कान की तरह

मैं हर रोज़ छूता हूं ख़ुद को तुम्हारे आने के बाद..
वैसे ये ठंडी चाय भी सौंधी सी है बिल्कुल तुम्हारी तरह

  • अनुजा विद्या श्रीवास्तव