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सौदागर

जिस्मों के ठहरे सौदागर
रूहों पे रिसाले रचते हैं
यहाँ दर्द के रोने रोते हैं
तासीर की बातें करते हैं

जिन्हें ख्वाब की शिरकत पता नहीं
तन्हाई की हरकत पता नहीं
तस्सवुर का जिनको इल्म नहीं
हकीकत का जिनको पता नहीं
वो दरिया कश्ती लेकर के
गहराई की बातें करते हैं

जिस्मों के ठहरे सौदागर
रूहों पे रिसाले रचते हैं
यहाँ दर्द के रोने रोते हैं
तासीर की बातें करते हैं

मुफ्लिस की जिनको ख़बर नहीं
जिन्हें जमीन का कोई ज्ञान नहीं
मजदूर की ठहरी मजबूरी का
जिन्हें रत्ती भर अनुमान नहीं
एक कागज लेकर कलम से वो
सच्चाई की बातें करते हैं

जिस्मों के ठहरे सौदागर
रूहों पे रिसाले रचते हैं
यहाँ दर्द के रोने रोते हैं
तासीर की बातें करते हैं

-पंकज कसरादे