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मजबूर आदमी

क्यों मजबूर हो जाता है आदमी,
किसी राह में ठहर जाता है आदमी,
कोशिशें लाख करने के बाद में,
मंजिल से दूर रह जाता है आदमी।

यूं तो लाख जमाना कहे,
कि मेहनत बेकार नही जाती,
लेकिन कभी कभी ऐसे हालात आते हैं,
कि चाह कर भी कुछ नही कर पाता आदमी।

सुबह से लेकर शाम तक,
बस यही सोचता है रहता है रात भर,
मजबूरी आये जिंदगी में भले ही,
लेकिन ऐसी भी नही कि
दम तोड़ दे आदमी।

– प्रिंस कसौधन