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जानती हो तुम? | 2

जानती हो…
अक्सर ही जब हम कभी साथ होते हैं
तो लोग भी बहकी बहकी सी बातें बनाते है,
कहते हैं हमारे बीच कुछ है,

मेरे कमरे का वो पंखा भी घूमते हुए
मुझसे कल रात कह रहा था ;
आज तुमने फिर अपनी उस दोस्त पर नज़्म लिखी है
जरा सुनाओ तो,

और तो और वो सिगरेट
जिसे तुम हमेशा पीने से मना करती हो
वो भी रूठने लगी है
कहती है आजकल तुम मुझे
अपने होठों से कम लगाते हो ..

अजीब अजीब सी अफवाहें उड़ाने लगे हैं लोग
हमें साथ देखकर…
तो… सुनो न
आओ हम-तुम दोनों मिलकर
इन अफवाहों को सच कर दें।

– पंकज कसरादे