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बढ़ते रहो ,चलते रहो …

बढ़ते रहो, चलते रहो
सोचो और सोचते रहो
खुद कुछ बनना है
सुनना है, समझना है
मुश्किलें आएंगी हज़ार राहों में
गिरना है फिर सम्भलना है
कोई खुश है कोई नाराज़ है
फिर भी हर दिन आगाज़ है
चुनौतियों से टकराना है
बस चलते ही जाना है

कहीं आंसू है तो कहीं दिखावा
रोज़ ही है ये छलावा
गम को बांटते चलो
मुस्कराते रहो
कोशिशों के दौर जारी है ज़िन्दगी के
साख की शाख को बढ़ाते रहो
आंधियां भी रुख मोड़ देंगी
हिम्मत के दम ख़म भरते रहो
बढ़ते रहो चलते रहो

– नायाब हुसैन