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तुम्हारे बाद

तुम्हारे
जाने के बाद
कहीं और दिल
लगा भी लेती
किसी को हमनवां
बना भी लेती
लेकिन
फिर तुम्हारी
मजबूरी और
मेरे इश्क़ में
फ़र्क क्या रहता
चाहती तो निकल आती
तुम्हारी यादों से मैं
नोंच डालती जिस्म से
तुम्हारे हर एहसास को
लेकिन फिर कैसे
ख़ुद को देख पाती आईने में
उफ्फ़ ये इश्क़ भी ना
कमाल होता है
ख़ुद को खोकर
यादों में खुश रहने का हुनर
इश्क़ ही दे जाता है
मलाल नहीं है
ना कोई शिकायत
मैं खुश हूँ अपने इश्क़ के साथ
तुम भी खुश रहना
अपने फैसलों के साथ…

-निदा रहमान