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बालकनी

कल
अपनी बालकनी से
तुम्हें जाते हुए देख रहा था
जब तक कि तुम
मुड़ नहीं गई।
हाथ में एक बैग भी था तुम्हारे,
फिर अचानक से याद आया
कि परसों की रात
तुमने फैसला सा सुनाते हुए
बताया था मुझे
कि अब तुम
बस कुछ दिन ही रहोगी यहाँ।
फिर क्या,
बस सोचने लगा
कि
उस दिन भी तुम्हें बालकनी से
जाते हुए देखूंगा।
बस
तुम्हारे हाथों में
कुछ और सामान रहेगा
बाकी सब वैसा ही लगेगा
जैसा अभी लग रहा है|

– प्रशांत तिवारी