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चाय और इश्क़

तुम्हारी इश्क़ भी उस चाय के जैसा है
जिसे ना तो कभी कुछ बोल पाता
ना ही कभी खुद से दूर कर पाता

इक राबता सा है जैसे
कितना भी पी लो कम ही लगता

मैं उस इश्क़ में चाय की अदरक जैसे
जिसे बस लज्जत के लिए डालना
और बचें हुए को फेंक देना

या यूं कहूं तो उस कुल्हड़ की तरह
तभी तक जरूरत है उसका जब तक उसमें चाय
वरना कचरे के डब्बे सी हाय

कितना हसीन होता
अगर मैं होता उससे पीने वाला
चाय की घूँट के साथ
तुम्हारे इश्क़ को पीता जाता

– अंकित आनंद