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पुकारता शहर

इतना आसान नहीं होता यूं शहर छोड़ना
धड़कने बेतहाशा धड़कती हैं
सिसकियां आंखों में झलकती हैं
रास्ते बुलाते से नजर आते हैं
दोस्तों के बोल रुलाते हैं
यूं शहर छोड़ना आसान नहीं होता
मन तो कहता है न जाओ तुम
इसी रास्ते पर थम जाओ तुम
रात सुनसान रास्ते पे तुम्हारी आहाट सहारा देती है
कैसे कहूं,अभी भी मान जाओ तुम
खैर,तुम्हारी पुरानी गलियों ने तुमको पुकारा है
ये शहर तो हमारा आवारा है
फिर भी खुदी की आशिकी में ढाल लेता है
हर किसी को
कि इसके ताल में गंगा घाट का नजारा है
नहीं जानती फिर
किस गली किस मोड़ टकराओगे
शहर तो फिर तुम कभी आओगे
पर शायद तब हम न होंगे
फिर ये किस्से गम न होंगे
फिर मैं जब भी उन गलियो में जाऊँगी
शायद फिर छिपने वाले तुम न होगे
ये शहर, वो शहर, सब तुम्हे अपना बनाएगा
फिर ये कल, तुमको दोहराएगा
दोहराते किस्सो में कितने हम जैसे होंगे
पर सच कहती हूं
हम जैसे पागल कम होंगे।

इरीना बाघेल