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इंस्टेंट इश्क़ | एक

मुझे, “तुम्हारे सिवा”
तुमसे कुछ भी नही चाहिए।

ये बोलकर ‘उसने’ इश्क़ किया था ‘मुझसे’,और
आज ‘मेरे’ अलावा उसे हर चीज़ अच्छी लगती है।

ये जो इंस्टेंट इश्क़ होता है ना,
वो प्यार से ज्यादा नफरत पैदा करता है, किसी रिश्ते में।

ख़ैर, छोड़ो ये सब,
जाओ जी लो अपनी ज़िंदगी, जिस तरह से जीना है तुम्हें
बस एक बात ध्यान रखना,

जब मैं लौटूँगा ना,
“तो तूफ़ान तुम्हारी ज़िन्दगी में वैसा ही होगा
जैसा तुम मेरी ज़िंदगी में लाई थीं।”

गुस्से में लिखे
सिध्दार्थ की डायरी के पन्नों को,
काश उस रोज़ वो पढ़ लेती।