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नींद

मानो कल ही की वो बात थी
शांत सी, रोज की ही तरह अँधेरी सर्द रात थी
मैं सिमटी थी खुद में, कुछ यादें बस साथ थी
जाने क्या मैं ऐसा खोज रही थी
करवट दर करवट कुछ सोच रही थी

रोज रोज बिन बुलाये कभी भी जो आती थी
वो नींद आज मुझे दूर से चिढ़ाती थी
मैंने सोचा बहुत हुआ अब सोना है
नींद बोली पहले ये ख्याल हटा
कि कल क्या पाना और किसे खोना है

मैंने कहा ये तो इंसानी मिजाज है
तो बोली फिर मैं चली
ये तो न खत्म होने वाली बातों का आगाज है
मैंने कहा चुप, बातें नहीं काम चाहिए
नींद बोली सोने के लिए दिमाग ही नहीं
दिल को भी आराम चाहिए

ख्यालों को रोको, धड़कनों को चलने दो
जो कल सूरज से पहले उगा था
आज उसे आराम से ढलने दो..

– उर्वशी आर्या