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भगवान

यही तो भगवान है
जो मंदिर में बैठा है
चुप चाप …
जो सबकी सुनता है या
शायद किसी की नहीं सुनता |
लोग आते हैं …
फूल – प्रसाद चढ़ाते हैं
आरती करते हैं
क्या भगवान भूखा है
इन सब चीजों का ?

लोग मन्नतें मांगते हैं
पूरी हुई तो फिर आते हैं
वरना गालियां देते हैं
क्या भगवान सुनता है ?
अगर हाँ , तो कुछ कहता क्यों नही
कुछ करता क्यों नही ?
गालियों के जवाब में,

शायद वह भी लोगों को
समझाना चाहता है कि
कर्म ही फल का आधार है
मान्यताएं, विश्वास ही
भगवान का आधार है ,
यही तो
मायावन हैं ….
यही अंधेरे में रोशनी की किरण है |

– सत्यम सोलंकी