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तेरे मेरे स्वप्न

तेरे मेरे स्वप्न
आकाश से बड़े,
कमल से सुंदर,
शिव से सत्य हों।
संवेगों के धरातल पर
जल्द वो खिलना और खेलना सीखें,
अंतरिक्ष की अप्राप्य ऊँचाइयों पर
रूठना मचलना सीखें।
फागुन सा मुस्कुराएँ
सावन की तरह गाएं,
सूरज की तपिश से
वो जीवन को बचाएं।।
हाँ तेरे मेरे स्वप्न
आकाश से बड़े हों।

– सौरभचंद्र पांडे