You are currently viewing ख्वाब

ख्वाब

मैं ख्वाब का झरना हूं
कुछ अकीब हो गया हूं
सारी उम्र बरसे बादल में
खुद बारिश हो गया हूं
मैंने कई रात गुजारी
उस इश्क के चांद पर
लोग कहते हैं मैं खूबसूरत हूं
खुद चांद हो गया हूं

मेरे सारे गुमा बदल गए
जब उसने देखा यूं
मेरे लबों पर गुल खिलते रहे
मैं गुलिस्तां हो गया हूं
मैं लफ्ज हूं, गजल हूं
इरशाद हो गया हूं
मैं नूर-ए-इश्क में जलता रहा
पाकीजा आग हो गया हूं

वो रम्ज अलग थी
जो रूह को पहचाना मैंने
वो छू कर बैठी रही
मैं ठंडी बयार हो गया हूं
हर पल गुजरे इम्तिहान में
कुछ यूं ढला मैं
मैं हर नामुमकिन सवाल का
जवाब हो गया हूं

मैं जिस रंग को खोजता रहा
अब वो छोड़ चुका हूं मैं
मैं खुदा खुदा करता रहा
मैं खुद खुदा हो गया हूं

– राहुल बंसल