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“तुम्हारा जाना”

तुम्हारा जाना,⁣
जैसे तोड़ गया,किसी बांध को।

उत्पाती लहरों सी,⁣
अब मैं काटती जा रही हूंँ, किनारों को ।⁣

⁣उच्छृंखल नव युवती सी,⁣
लांघती जा रही हूंँ,निर्मूल्य मापदंडों को।⁣

⁣किसी नटखट शिशु सी,⁣
मैं टटोल रही हूंँ, हर खिलौने को।⁣

⁣भद्रता की केंचुली उतार,
हुई नई सी,⁣ अब मंद-मंद गढ़ रही हूँ, खुद को।⁣ ⁣

हांँ, तुम्हारा जाना,⁣
जैसे किसी लंबे श्राप से निकाल,⁣
पुनर्जन्म दे गया हो मुझको।⁣


-तृषा