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जानती हो तुम? | 1

जानती हो
उस एक रोज़
जब झील के किनारे खड़े होकर
हम दोनों उसकी गहराई का
अंदाज़ा लगा रहे थे,

हम दोनों को साथ देख,
झील में उठती हुई लहरें भी
हिल्लोरे मारते हुई हँस रही थी,

कह रही थी
हम दोनों बिलकुल पागल हैं
भला झील की भी गहराई का
कोई अंदाज़ा लगाता है क्या ?

शायद लहरें भी हम पर शक कर रही थीं
सोच रही थी ये भी अजीब प्रेमी हैं
प्रेम की गहराई में डूबना छोड़
झील की गहराई नाप रहे हैं

– पंकज कसरादे