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खास है तू

अच्छा तो उदास हो?
पर ये बताओ किस बात से उदास हो?
बस यही कि दर्द को कहीं अंदर छिपाए रहते हो
कोई पूछे तब भी कुछ नहीं कहते हो
क्यूं तुम इतने टूटे जा रहे हो?

क्यूं अपने वजूद से कहीं छूटे जा रहे हो
बताओ, है कोई दलील तुम्हारे पास?
क्या लगता है, तुमको इस घुटन में इतना खास
भीड़ में भी अकेले-अकेले से दिखते हो
इस अनजान जमाने में भी रोज टुकड़ों में बिकते हो

अरे कुछ तो कर मेरे मनचले मुसाफिर
यूं खाली-खाली सा इस दुनिया में न फिर
तू तो अपनी दुनिया का बादशाह हुआ करता था
इस कमबख्त दुनिया से कहां तू डरता था

तो आखिर क्यूं उदास है तू?
कम से कम खुद के लिए तो खास है तू…

-शिल्पी कुमारी