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कुछ इस तरह से

कुछ इस तरह से ये जिंदगी के दो पल गुजार रहा हूँ मैं,कि
हर एक पल में तेरे चेहरे को निहार रहा हूँ मैं।

तेरे चेहरे की तब्बसुम को देखकर ही तो,
अपने होठों पर मध्यम-सी मुस्कान ला रहा हूँ मैं।
हाँ,कुछ इस तरह से……

तेरे कमल के समान नयनों में उपस्थित अश्रुओं को देखकर ही तो,
अपने विरह-युक्त लोचनों से आजकल तेरी प्रशंसा के गीत गा रहा हूँ मैं।
अब,कुछ इस तरह से……

तेरी अर्थ-विहीन बातों को बस याद करके ही तो,
अपने ह्रदय रूपी मन-मंदिर में तेरे सुन्दर ख़्यालों के बीज बोए जा रहा हूँ मैं।
हाँ,कुछ इस तरह से……

तेरे अद्भुत स्वरूप को दिल में बसा-कर ही तो,
अपनी कलम से तेरे लिए शब्दों के अनगिनत बाण चलाए जा रहा हूँ मैं।
अब,कुछ इस तरह से……

तेरी अमर्ष से भरी आंखों को निहारकर ही तो,
अपने नर्म ह्रदय को हर क्षण रुलाएं जा रहा हूँ मैं।
हाँ,कुछ इस तरह से…..

पर,
तेरे नयनों के भयावह क्रोध को भूलकर ही तो,
अपने दिल रूपी खाली कागज पर तेरी कहकशाँ को पिरोए जा रहा हूँ मैं।

बस,कुछ इस तरह से ये जिंदगी के दो पल गुजार रहा हूँ मैं,
कि हर एक पल में तेरे चेहरे को निहार रहा हूँ मैं।।

– हर्षित दीक्षित