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कहीं ऐसा न हो

रोज़ का मिलना जुलना
मुस्कुरा कर बातें करना
तेरी खिड़की खुलते ही मेरा गली से गुज़रना
हमें प्यार हो जाए, कहीं ऐसा न हो।

हर बात पर रूठ जाना
हर बार ये क़समें खिलाना
घर के नीचे घण्टों इंतज़ार करवाना
ये दिल बेज़ार हो जाए, कहीं ऐसा न हो।

हाथ में हाथ का आना।
रह रह कर नज़रें मिलाना।
दिलकश नज़ारे, आवारा बादल, और बारिश का आना
हम हद से गुज़र जाएं, कहीं ऐसा न हो।

कोई खूबसूरत अफसाना।
कोई ज़ख़्म पुराना।
गम, ख़ामोशी, तन्हाई और हाथ में कलम का आना
ये कलम सब कुछ लिख जाए, कहीं ऐसा न हो।

– असीम श्रीवास्तव