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उस पार

बड़ी झील के उस पार,
बसते हैं कहीं शहर
रहते हैं कई लोग
ज़ारी हैं जिनकी ज़िंदगी से जद्दोजहद

बड़ी झील के उस पार,
टूटते हैं अनगिनत सपनें
बिखरते हैं सारे जज़्बात
खिड़कियों से झाँकती है जहाँ कर्कश धूप

बड़ी झील के उस पार,
मिलते हैं उड़ानों को पर
पलते हैं सारे क़ीमती ख़्वाब
होती हैं जहाँ उम्मीदों की भोर

बस वहीं
बड़ी झील के उस पार,
जहाँ बसता है मेरा मन,
मेरा घर

– लोकेश सिंह ‘सम्राट’