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आंखें

अब दृश्यों से त्रस्त हैं आंखें
चारों ओर विभक्त हैं आंखें

आंखों से ओझल है कोई
बेकल हैं, संतप्त हैं आंखें

बन्द नहीं होतीं जाने क्यों
युग युग से अभिशप्त हैं आंखें

जबसे आंखें खोल गया वो
तबसे ही संन्यस्त हैं आंखें

सूख गया आंखों का पानी
अबके संकटग्रस्त हैं आंखें

दर्शन दुर्लभ है पर होगा
इतनी तो आश्वस्त हैं आंखें

– शशांक पटेरिया