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अपरिभाषित

दूरियों का यज्ञ है
मैं हो गया हूँ मोम सा
आंखों में मदिरा उसके
या जैसे प्याला सोम सा
वह मेरे लिए समानार्थी सी
मैं उसके लिए विलोम सा
बन कर पुतला मोम सा
सर्द मौसम में भी पिघलता रहता हूं

और मैं बस चलता रहता हूँ
अपरिभाषित जलता रहता हूँ…

– निलेश बोरबन