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रोशनी

फैलाते हो रोशनी तुम भी तो,
अपने सुविचारों से,
अच्छे कर्म से।
डूबते तुम भी तो हो,
कभी गम के साये में,
तो कभी तम के घेरे में,
हो जाते हो लाल,
कभी शरम से,
कभी गरम से।
ठीक वैसे ही जैसे,
कोहरों को मात देता है,
वो बादलों को चीरता आगे बढ़ता है।
तुम भी बढ़ते हो,
बुरे वक्त को,
पग पग की बाधओं को,
चीरते और फटकारते।
हरेक दिन वो ढलता है,
हरेक दिन वो चढ़ता है,
ठहरता है,
और आगे बढ़ता भी है,
छटते हैं जब बादल,
नया लगता है वो फिर से,
हे मनुज!
तुम भी तो थकते हो,
तुम भी तो ठहरते हो,
आगे बढ़ना तुम भी,
हरेक रूकावट के बाद,
नई ऊर्जा के साथ,
नए जोश के साथ,
तुम भी एक सूरज हो,
हाँ,
तुममें भी एक सूरज है।

लवलेश वर्मा