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ख़्वाब

कौनसा रंग लाएगा ख़्वाब,
क्या क्या गुल खिलायेगा ख़्वाब।

क्या ख़्वाब का ख़याल रखूं?
ख़याल से मिलाएगा ख़्वाब?

नींद की तहों में छिपकर,
आंख को रुलाएगा ख़्वाब।

सांस रुकने लगी है अब तो,
लगता जान से जाएगा ख़्वाब।

रात के साढ़े तीन बजे है,
क्या फिर से आंख में आएगा ख़्वाब?

-पंकज कसरादे