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कल आज और कल

कल,आज और कल के लिबास में बैठी हूं,
आज मैं खुद को तलाशने की फिराक में बैठी हूं।
जो बीत गया है उसे सोच कर उदास सी बैठी हूं,
बदल नही सकता जो कल उसे सुधारने की आस में बैठी हूं,
कल, आज और कल के लिबास में बैठी हूं,
आज मैं खुद को तलाशने की फिराक में बैठी हूं।
मुस्कुरा कर जी लिया हर पल को मैने,
गमों को राख कर बैठी हूं,
अपने आज को सवारने के लिहाज़ से बैठी हूं,
कल आज और कल के लिबास में बैठी हूं,
आज मैं खुद को तलाशने की फिराक में बैठी हूं।
जिसका पता नहीं उसे सोच कर परेशान सी बैठी हूं,
उस आने वाले कल की खुशियों के इंतज़ार में बैठी हूं,
कल आज और कल के लिबास में बैठी हूं,
आज मैं खुद को तलाशने की फिराक में बैठी हूं।

– अनघा तेलंग