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कुछ-कुछ कभी-कभी

एक दिन गुस्से से भरकर
मैंने पूछा उनसे,
महसूस होता है कुछ की नहीं,
वो झट से बोले
होता है ना कुछ-कुछ, कहीं-कहीं,

दूसरा सवाल झुंझला के पूछा मैंने,
प्यार आता भी है मुझ पर या नहीं,
हंसते हुए बोले वो,
आता है ना, हल्का-हल्का, कभी-कभी

एक बात बताना सही-सही
ये जो कुछ-कुछ है और कहीं-कहीं
वो असल में है भी या
कभी था ही नहीं
जो था हल्का-हल्का, कभी-कभी
आज वो बात है भी या
कभी थी ही नहीं…

-उर्वशी आर्या