मुक्तक

खनक के शोर में खुद का कभी सानी नहीं बेचा सुरों की चाशनी में लफ्ज़ का मानी नहीं बेचा कठिन इस दौर में जब गर्व का कारण ही बिकना हो…

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आँखों में मशाल

अपनी बेटी को सिखा रहा हूँ आँख मारना जिससे वो एक झटके में ही ध्वस्त कर दे उसे घेरने वाली मर्दवादी किलेबंदी उसे सिखा रहा हूँ आँखें मटकाना कि वो…

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ग़ज़ल

ऐसी भी क्या उड़ी है ख़बर देख कर मुझे सब फेरने लगे हैं नज़र देख कर मुझे क्यों छट नहीं रहा है सियह रात का धुआँ क्यों मुंह छुपा रही…

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