कोई इरादा न था

सुनों तुम्हें यूँ देखना और देखते ही रहना आँखों के रास्ते दिल में उतार लेने का कोई इरादा ना था खुद को बेकरार करने का बिन अल्फाज़ इक़रार का कोई…

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इन दिनों

तुम लौटते हो बदल जाता है कमरे का रंग दीवार पर अटके फ़्रेम में तुम्हारी न दिखती तस्वीर भी जाने कैसे निखर सी जाती है किसी की नज़रों में नहीं…

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ऐतबार

मुझ पर कर ऐतबार हजरत मुझ से पूछ बैठे आँखों में ये चमक कैसी क्या हुआ कौन है वो खुशनसीब नजर झुक सी गई अदब से मैने इशारे मे रूख…

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