ख्वाहिशें

कैसा होता जो वीरान कर अपने तमाम शहर हम वापस लौट जाते फिर जंगल को नजर भर हरियाली होती सांस भर हवा भूख भर रोटी और आत्मा भर संगीत कैसा…

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