पगडंडी

इस शहर से दूर इक् दश्त में हम अकेले और बहुत लोग हमारे शहर से दूर होने का जश्न मनाते हैं हम बहुत टेढ़े भी तो हैं एकदम दश्त में…

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जिंदा ख्वाब

हम रात के परवाने हैं, शम्मा जलाने आए तुम दिन के सूरज हो ढल जाओगे कहीं पर ये बात गांव-गांव तक जाएगी, एक आग बन हमने जिंदा ख्वाब देखा है…

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अस्तित्व

मेरे निष्प्राण शरीर को आस दो सकल जीवन में अपने प्रेम की आवाज दो व्याकुल से नैन मेरे वाणी भी अकुला गयी तेरे दर्शन की संजीविनी का मुझे विश्वास दो…

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