चार लाइनें-अमित गुप्ता

कभी अपनी ख्वाहिशें भी जताओ तो बेहतर हैउसकी हर हां में हां न मिलाओ तो बेहतर है.. कौन जाने कब तुम्हारा मज़हब बदल जाए..यूं हर किसी को खुदा न बनाओ…

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