वक़्त के मुसाफिर

आँखों में वो जूनून दिखा जो समंदर डुबो दे उम्मीदों में वो अलख जगा जो घने अँधेरे को चीर दे खुदी को पहचान तू ग़ालिब की बस नहीं है खुदी…

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चलो यहाँ से निकलते हैं

काफ़िले का शौक़ था पर घटते क्रम की गिनती जैसे लोग ज़िन्दगी में दहाई से इकाई हो गए भीड़ बनाम अकेलेपन के नफे नुकसान से परे शोक मना लिया न…

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कोई इरादा न था

सुनों तुम्हें यूँ देखना और देखते ही रहना आँखों के रास्ते दिल में उतार लेने का कोई इरादा ना था खुद को बेकरार करने का बिन अल्फाज़ इक़रार का कोई…

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