नारीशक्ति

और जनाब कैसे हैं, घरबंदी मैं बैठे हैं,उठो, चलो, खड़े हो जाओ,अपने घर की नारी शक्ति का कुछ बोझ उठाओ.उनको भी कुछ आराम मिले,अरसे बाद उनके हाथों को भी विराम मिले.कहती नहीं पर उनको भी आराम चाहिए,इस मशीनी ज़िंदगी से उनको भी आज़ादी चाहिए.तुम्हारी ज़िंदगी की नीरसता को दूर करतीं,घर, आँगन में हंसती-मुस्कुराती खुशियां भरतीं,उनको उनके अस्तित्व की याद दिलाओ,उनमे छुपी गायिका, चित्रकार, शिक्षिका, नृत्यांगना को पुनः जगाओ.यदि ये मौका हमको-तुमको मिला है,उनके मन-मस्तिष्क को कुछ आराम कराओ.उनमे नयी ऊर्जा, खुशी और नयेपन की अलख जगाओ,चलो, उठो, खड़े हो जाओ,अपने घर की नारी शक्ति का हाथ बटाओ. सानिध्य पस्तोर (एक मुसाफ़िर)

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डर

कितना डरते हैं, लोग यहाँ….कुछ पुरुष भी डरते हैं,कुछ औरतें भी……बच्चे और तो और जानवर भी डरते हैं…..सुना है पेड़-पौधे भी डरते हैं….?क्यूँ डरते हैं…?ऐसी कोई वजह भी नहीं डरने…

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