You are currently viewing तारा

तारा

चंद तारे तोड़कर,
गुच्छा बनाकर,
चाँद ने मुझ पर जो फेंका
लौ सी फूटी एक,
सारे नज़ारे बदल गए,
एक तारा मैंने पास छुपा लिया
उसको जतन से छुपाया
सजाया संवारा
आस-पास अपने रखा
बड़ा नटखट है वो,
पैबंद पहन घूमा कल,
सारी रात मुझको भी जगाया
कभी आंगन-कभी मुंडेर,
कल साथ मेरे शहर घूमा

यही गलती हुई
देख बाज़ार इंसानों का
उदास मुरझा गया
वो खुल के रो भी ना पाया
उसका मायूस चेहरा देख
मैं भी उदास हुआ
चाँद निकलते
शाम ही उसे विदा किया
दूर ही सही वो खुश है
अब हर रात बात होगी |

– सचिन बिल्लोरे ‘आस’