तुम्हें याद है
उस रोज़ जब तुम बेवजह रूठ के चली गईं थीं
मैंने मनाना चाहा था तुम्हें
लेकिन तुम अपने गुरूर में थीं
हर बार की तरह
तैश में आकर तुमने यहाँ तक कह दिया कि –
मुझे अब ज़रूरत नही है तुम्हारी
पता है उस शाम
मैं एक सिगरेट को जला रहा था और
उसके “एश” को बार बार चुटकी से झडाते हुए सोच रहा था
कि किसी रोज़ हम दोनों का रिश्ता भी
बिलकुल इसी “एश” की तरह झड़कर राख़ में तब्दील न हो जाये
केवल कुछ गलतफहमियों के कारण………