नज़र भर के फासले पर
रखती है सब पर नज़र
द्वार से ही टाल देती है
आती सब बलाएँ
लीपती है आँगन में
सुखदा नम माटी
होती है परेशान
जरा सा छींक दे बिटवा
रखती है ख़्याल
मुनिया की ऊंच नीच बात का
पहली उतरती रोटी से
पूजती है गौ माता
प्रेम से बनाती है
कलेवा अपने हाथों से
खुरच कर दाल की हांडी
बचे चावल खाकर हो जाती तृप्त
पाहुने आ जाए कोई तो
पाँच पकवान से थाल सजाती है
दिन भर रहती है मगन
घर आँगन के काम काज में
नींद नहीं दुआएँ जगी रहती है
रात भर बूढ़ी थकी आँखों में
– दीप