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हाल-ए-दिल

औरों के कह कर किस्से, सुनाता रहा उसको
यूँ हाल अपने दिल का बताता रहा उसको ।

या तो अनजानी रही वो हाल-ए-दिल से मेरे
या हर बार मुस्कुराकर ठुकराती रही मुझको ।

मस्जिदों में खुदा से मांगते जब थक गया उसको
तो मयखानों में जा जाकर भुलाता गया उसको ।

शायद वो लौट कर आ जाये कभी वापस
इसी उम्मीद में ख्वाब में बुलाता रहा उसको

या तो थी मेरे इश्क़ में दीवानगी कम,
या बे-परवाहियां ज्यादा थी मेरी
मैं हँसाता रहा उसको वो रुलाती रही मुझको ।

औरों के कह कर किस्से सुनाता रहा उसको
यूँ हाल आपने दिल का बताता रहा उसको ।

– शुभम साहू