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बांधो मत

नहीं,बांधो मत

दायरों में
लफ़्ज़ों में
रिश्तों में

मेरी रूह को,मेरेे अहसासों को
नहीं ,बांधो मत
कोई रिश्ता नहीं
कोई नाम भी नहीं
खुला रहने दो
राहों को

चले जाना जब चाहो
बन्धन नहीं कोई भी नहीं

छटपटाते देखा है
अक्सर..
दायरों में सिमटे
अहसासों को..
नामों से बंधे
रिश्तों को !!

इसलिए
तोड कर किनारों को
बहने दो
बहते पानी के साथ
खुली हवा के साथ

बांधो मत

पुष्पिंदरा चगती भंडारी