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हमारा होना

तुम्हारा और मेरा होना
कश्मीरी पुलाव जैसा होना है
जिसमे तुम्हारे और मेरे होने की महक तो है
पर कश्मीर नहीं है

अलगाववादियों और अखंड भारत के उदघोष के बीच
ठीक वैसे ही मौजूद हैं हम
जैसे हमारा स्वर्ग

बर्फ सरीखी ठंडी वादियों में
पत्थरबाजों के माथे से टपकते पसीने से भी
हमारे होने के एहसास का
भ्रम होता है

काश!!
हम दोनों भी आजाद हो पाते
अपने में ही
अपने होने के लिए

– आशीष रघुवंशी