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उम्मीद-ए-वफ़ा

काश शक की भी दवा होती
वह भी उड़ती एक हवा होती

दूर हो जाता हर वहम उनका
कोई भी न उनके सिवा होती

टूट कर न बिखरता कोई भी
गर एक उम्मीद-ए-वफ़ा होती

समंदर भी मिल जाता साहिल से
अगर लहरों के लब पे दुआ होती

वक्त पे गर उठ गया होता जिद्दी
नमाज़ तेरी भी न कज़ा होती

– अली हाशमी