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मैं और मन

कुछ तो कर मेरे माज़ी
कुछ तो बना मुझे,
डाल दे वहशत में या
पागल बना मुझे।

बरसों हुए है आंख में
ठहरा नही कोई,
हो सके तो कोई मीर सा
ख़्वाब दिखा मुझे।

कितना उदास चेहरा!
कितनी बेचैन निगाहें!
सीपियों सी आंख में,
अंगारे गर्म आहे।
कितने दिनों से तुमको
देखा नहीं संवरते!
नाज़नी दुःखी ना हो,
ले काज़ल बना मुझे।

झीलों के शहर में हम,
तन्हा तन्हा से रहकर,
साहिल पर घूमते हैं,
कुछ शब्दों को साथ लेकर,
मेरी कल्पना में बस जा
कोई शायर बना मुझे।
डाल दे वहशत में या,
पागल बना मुझे।

सहमा सहमा सा ये मन,
करने लगा शिकायत,
चेहरे हज़ारों देखकर
क्यों होने लगा है आहत,
परछाई से भी ये अब तो
देखो लगा है डरने,
हौसला देने को आ अब
ना कायर बना मुझे!
डाल दे वहशत में या
पागल बना मुझे।

– पंकज कसरादे