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भोर होने तक…

और,
बेमन से
संसार में आ गयी लड़कियों से
उग आती है
लताएं
जो सब तरफ फैलने लगती है
सुगंध और स्वयं सृजन की तरह
ग़ालिब,मीर,फिराक जिसके
क़सीदे काढ़ गए
जिस्म और रूह दोनों के
उतर आते हैं जिसके दीवाने
फिर वो जिंदगी भर
लड़ती है जिस्म के दरिंदों से
खूबसूरत हुस्न का
उसे यही मिलता है कीमत यहाँ
चौधरियों , मौलवियों ,ठेकेदारों के आंखों में
बनती काटा
पहना बुर्का,घूंघट
घरों के अंदर ही बना दी जाती है
उसका तबेला
वहीं उसे जीना है
जनना है किसी ना किसी के साये में
कब होती है
वो लताएँ स्वतंत्र
शायद कभी चांदनी रात में
बियाबान आसमाँ
उसकी नसीबों में आता है
राजकुमार बनकर
जिसके
संग वो उड़ती है
कुलाचें भरती है
वो उड़ती फिरती है
भोर होने तक….

-सुरेश वर्मा