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जीवन

हे तथागत
जीवन का ज्ञान दुख को छोड़कर
परिवार को तजना नहीं होता
एक समर है यह जीवन
यहाँ हर पल लड़ना होता है
वैराग्य ज्ञान नहीं देता
यहाँ मृत्यु भी उत्सव है

जन्म भी यहाँ आसान नहीं होता
तुम पीड़ाओं से विरक्त हुए
यहाँ जीवात्मा भी जन्म पीड़ा देकर होती है
जब तक समर शेष है
जीवन के भी अवशेष हैं
तर्कों पर साँसें नहीं चला करती
उत्पत्ति से पहले यहाँ अन्त की कहानी रची जाती है

यदि जीवन दुख का कारण है
तो धरा का कष्ट क्यों शेष है
पृथ्वी से जन्म का विस्तार हुआ
मानव तो ईश्वर का आदेश है
मोक्ष की बात करते हो तुम
क्या जीवन से विसंगति दूर हुई
यहाँ हर जीव यदि हार मानकर
वन गमन को प्रस्थान करे
कर्मों के जीवन में गौतम
हर जीव यहां अकर्मण्य मरे..

-श्वेता पाण्डेय