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जिंदा ख्वाब

हम रात के परवाने हैं, शम्मा जलाने आए
तुम दिन के सूरज हो ढल जाओगे कहीं पर
ये बात गांव-गांव तक जाएगी, एक आग बन
हमने जिंदा ख्वाब देखा है तो वो भी यहीं पर

हम रात के परवाने हैं, शम्मा जलाने आये हैं..

जिस ओर से होकर गुजरी है ये हवा,
वो दौर-ए-सियासत भी देखा है हमने
जिस दौर-ए-सियासत की बात हैं करते
वो दौर-ए-सियासत हमने देखा ही नहीं

इस दौर की सियासत अब हम करेंगे,
ये बात सत्ता-ए-नशीन तुझे बताने आए हैं

हम रात के परवाने हैं, शम्मा जलाने आये हैं..

– कार्तिक सागर समाधिया