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माई

माई, तू इतनी ठंड में यहाँ बैठी है?
स्वेटर है तेरे पास?

ना रे बेटा .. ये एक पुरानी सी चादर है..पर बहुत जोर की ठंडी लगती है।

रुक मैं कल तेरे लिए स्वेटर लेकर आऊंगा.. तू यहीं बैठी मिलेगी न??
हाँ.. मैं कहाँ जाऊँगी .. यहीं तो बैठती हूँ रोज

तू स्वेटर लाएगा?
हाँ, मैं कल लेकर आऊंगा.. तू मुझे यहीं मिलना

कुछ रोज बाद फिर से मंदिर के सामने गया ।
वो कहीं दिखी नहीं। मैंने आसपास खोजा
वहां बैठे बूढ़े बाबा से पूछा, वो यहाँ एक बूढ़ी सी औरत बैठा करती थी.. कहाँ गयी?

बेटा वो तो दो दिन पहले चल बसी। रात में सर्दी बहुत तेज थी
बेचारी बर्दाश्त नहीं कर पाई। सुबह होते होते उसने प्राण छोड़ दिए

मेरे आस पास अजीब सी खामोशी छा गई थी और मैं चुपचाप वहां खड़ा था |

– रवि वर्मा