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हादसा

जब ये हादसा
हुआ मेरे साथ,तो
मैं तड़प उठा
एक पल को तो
अंधेरा सा छा गया
मेरे आगे
उसी अँधेरे में लगा
जैसे मेरी उंगलियों की पोरों से
कुछ टपक रहा है
नीचे देखा तो खून था
उस जगह को
छूने की हिम्मत नहीं थी मुझमें
उंगली कभी नीचे की
तो कभी ऊपर
कई दिनों तक
मैं, उसे
ऐसे ही बचाता रहा
बिल्कुल तुम्हारी तरह
क्योंकि, तुम भी
मेरे उस जिन्दा नाखून की तरह हो
जो गलती से कट गया…

-राजन पांडेय